Littérature scientifique sur le sujet « अपतन »

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Articles de revues sur le sujet "अपतन"

1

मिश्रा, आ. ंनद म. ुर्ति, प्रीति मिश्रा et शारदा द ेवा ंगन. « भतरा जनजाति में जन्म संस्कार का मानवशास्त्रीय अध्ययन ». Mind and Society 9, no 03-04 (29 mars 2020) : 39–43. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20215.

Texte intégral
Résumé :
स ंस्कार शब्द का अर्थ ह ै श ुद्धिकरण। जीवात्मा जब एक शरीर का े त्याग कर द ुसर े शरीर म ें जन्म ल ेता है ता े उसक े प ुर्व जन्म क े प ्रभाव उसक े साथ जात े ह ैं। स ंस्कारा े क े दा े रूप हा ेत े ह ैं - एक आंतरिक रूप आ ैर द ूसरा बाह्य रूप। बाह ्य रूप का नाम रीतिरिवाज ह ै जा े आंतरिक रूप की रक्षा करता है। स ंस्कार का अभिप्राय उन धार्मि क क ृत्या ें स े ह ै जा े किसी व्यक्ति का े अपन े सम ुदाय का प ुर्ण रूप स े योग्य सदस्य बनान े क े उदद ्ेश्य स े उसक े शरीर मन मस्तिष्क का े पवित्र करन े क े लिए किए जात े ह ै। सभी समाज क े अपन े विश ेष रीतिविाज हा ेत े ह ै, जिसक े कारण इनकी अपनी विश ेष पहचान ह ै, कि ंत ु वर्त मान क े आध ुनिक य ुग स े र्कोइ भी समाज अछ ुता नही ं ह ै जिसक े कारण उनके रीतिरिवाजों क े म ुल स्वरूप म ें कही ं न कहीं परिवर्त न अवश्य ह ुआ ह ै। वर्त मान अध् ययन का उदद े्श्य भतरा जनजाति क े जन्म स ंस्कार का व ृहद अध्ययन करना है। वर्त मान अध्ययन क े लिए बस्तर जिल े क े 4 ग ्रामा ें का चयन कर द ैव निर्द शन विधि क े माध्यम स े प ्रतिष्ठित व्यतियों का चयन कर सम ुह चर्चा क े माध्यम से तथ्यों का स ंकलन किया गया ह ै। प ्रस्त ुत अध्ययन स े यह निष्कर्ष निकला कि भतरा जनजाति अपन े संस्कारों क े प ्रति अति स ंवेदनशील ह ै कि ंत ु उनक े रीतिरिवाजा ें म ें आध ुनिकीकरण का प ्रभाव हा ेने लगा ह ै। भतरा जनजाति को चाहिए की आन े वाली पीढ ़ी को अपन े स ंस्कारा ें क े महत्व का े समझान े का प ्रयास कर ें ।
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2

चा ैधरी, र. ेखा. « हिन्दी साहित्य म ें नारी पात्रा ें का मना ेविज्ञान ». Mind and Society 8, no 01-02 (8 avril 2019) : 91–97. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-81-2-201915.

Texte intégral
Résumé :
नारी मनोविज्ञान के संबंध में नारी मनोभावों के विभिन्न पक्षें में अचेतन, काम, अहम, अंतद्व र्न्द, हीनता, श्रेष्ठता, आत्मपीड़न, परपीड़न, कुन्ठा की अभिव्यक्ति द ेखन े को मिलती है। मानव मन के विभिन्न स्तरों पर नारी मन की व्यथाओं, भावनाओं संवदनाओं के विभिन्न पक्ष इन उपन्यासों में उभर कर आत े है। इन उपन्यासां में पात्रों की गहन मानसिक प्रक्रिया को उपन्यासकारों न े स्पष्ट किया है साथ ही इन नारी मन और उनके व्यक्तित्व के मूल द्वन्दो को व्यक्त किया हैं इस अध्ययन में जो मनोवैज्ञानिक उपनन्यास चुने गये उनके मार्मिक जीवन की जटिलता के कारण युवा मनोविज्ञान, व्यक्तित्व मनोविज्ञान और असामान्य जीवन की अभिव्यक्तियां द ृष्टिगोचर होती हैं लेखिकाओं न े नारी जीवन में निहित विसंगतियों को उजागर किया है जिनमें वह मानसिक अत ृप्ति का शिकार है। इनके उपन्यासों की विशेषता यह है कि इन्होंन े आत्मीयता का अभाव और पीढि ़यों के अंतर की समस्याओं का चित्रण भी किया है। लेखिकाओं न े नारी स्वत ंत्रय और उसकी मुक्त जीवन शैली को लेकर भी अन ेक उपन्यास लिखे है। वत र्मान युगीन नारी की संवेदनाओं और मनोभावों का सूक्ष्म अंकन इनके उपन्यायों में हुआ हैं। नारी की मानसिकता का, जहां इन्होंने यथार्थ अंकन किया है वहीं उसके भीतर के अहं को भी स्पर्श किया हैं। लेखिकाओं ने आज की आधुनिक नारी की मनः स्थिति का चित्रण करते हुए अपन े उपन्यासों के माध् यम से आज की पढ़ी लिखी नारी अपन े व्यक्तित्व की रक्षा करन े में कितनी समर्थ है इसका भी उल्लेख किया है।
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3

ब ेगम, आब ेदा. « छŸासगढ ़ क े महाप ुरूषा ें का सामाजिक समरसता म ें या ेगदान’ ». Mind and Society 8, no 01-02 (18 avril 2019) : 87–90. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-81-2-201914.

Texte intégral
Résumé :
सामाजिक समरसता एक ऐसा विषय है जिसकी चर्चा करना एवं इसे ठीक प्रकार से कार्यान्वित करना आज समाज एवं राष्ट ्र की मूलभूत आवश्यकता है। इसके लिए हमें सर्वप्रथम सामाजिक समरसता के अर्थ का व्यापक अध्ययन करना आवश्यक है। संक्षेप में इसका अर्थ है सामाजिक समानता। यदि व्यापक अर्थ द ेखें तो इसका अर्थ है जातिगत भेदभाव एव ं अस्पृश्यता का जड ़मूल से उन्मूल कर लोगों में परस्पर प्रेम एवं सौहाद र् बढ ़ाना तथा समाज के सभी वर्गों एव ं वर्णों के मध्य एकता स्थापित करना। समरस्ता का अर्थ है सभी को अपन े समान समझना। सृष्टि में सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान है और उनमें एक ही चैतन्य विद्यमान है इस बात को हृदय से स्वीकार करना।
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4

खापर्ड े, स. ुधा, et च. ेतन राम पट ेल. « कांकेर में रियासत कालीन जनजातीय समाज की परम्परागत लोक शिल्प कला का ऐतिहासिक महत्व ». Mind and Society 9, no 03-04 (30 mars 2020) : 53–56. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20218.

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Résumé :
वर्त मान स्वरुप म ें सामाजिक स ंरचना एव ं ला ेक शिल्प कला म ें का ंक ेर रियासत कालीन य ुग म ें जनजातीय समाज की आर्थि क स ंरचना म ें ला ेक शिल्प कला एव ं शिल्प व्यवसाय म ें जनजातीया ें की वास्तविक भ ूमिका का एव ं शिल्प कला का उद ्भव व जन्म स े ज ुड ़ी क ुछ किवद ंतिया ें का े प ्रस्त ुत करन े का छा ेटा सा प ्रयास किया गया ह ै। इस शा ेध पत्र क े माध्यम स े शिल्पकला म ें रियासती जनजातीया ें की प ्रम ुख भ ूमिका व हर शिल्पकला किस प ्रकार इनकी समाजिकता एव ं स ंस्क ृति की परिचायक ह ै एव ं अपन े भावा ें का े बिना कह े सरलता स े कला क े माध्यम स े वर्ण न करना ज ैस े इन अब ुझमाडि ़या ें की विरासतीय कला ह ै। इस शिल्पकला क े माध्यम स े इनकी आर्थि कता का परिचय भी करान े का सहज प ्रयास किया गया ह ै।
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5

चा ैहान, ज. ुवान सि ंह. « प ्रवासी जनजातीय श्रमिका ें की प ्रवास स्थल पर काय र् एव ं दशाआ ें का समाज शास्त्रीय अध्ययन ». Mind and Society 8, no 03-04 (28 mars 2019) : 38–44. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-83-4-20196.

Texte intégral
Résumé :
भारत म ें प ्रवास की प ्रक्रिया काफी लम्ब े समय स े किसी न किसी व्यवसाय या रा ेजगार की प ्राप्ति ह ेत ु गतिशील रही ह ै आ ैर यह प ्रक्रिया आज भी ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाय म ें गतिशील दिखाइ र् द े रही ं ह ै। प ्रवास की इस गतिशीलता का े रा ेकन े क े लिए क ेन्द ्र तथा राज्य सरकार न े मनर ेगा क े तहत ् प ्रधानम ंत्री सड ़क या ेजना, स्वण र् ग ्राम स्वरा ेजगार या ेजना ज ैसी सरकारी या ेजनाआ े ं का े लाग ू किया ह ै, ल ेकिन फिर ग ्रामीण जनजातीय ला ेगा े ं क े आथि र्क विकास म े ं उसका असर नही ं दिखाइ र् द े रहा ह ै। ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाया ें म े ं निवास करन े वाल े अधिका ंश अशिक्षित हा ेन े क े कारण शासकीय या ेजनाआ ें का लाभ नही ं ल े पा रह े ह ै। प ्रवास करन े का प ्रम ुख कारण अपन े म ूल स्थान पर रा ेजगार व आय क े स ंसाधन न हा ेन े व क ृषि आय म ें कमी क े करण द ूसर े स्थान या शहरी क्ष ेत्रा ें की आ ेर रा ेजगार की तलाश म ें प ्रवास कर रह े ह ैं। ग ्रामीण जनजातीय परिवारा ें स े हा ेन े वाल े प ्रवास की प ्रक्रिया का े द ेखत े ह ुए शा ेधाथी र् न े अपन े शा ेध अध्ययन ह ेत ु अलीराजप ुर जिल े का चयन किया ह ै, जिस परिवार स े सदस्य प ्रवासी मजद ूरी जात े रहत े या जा रह े ह ै ं। इस प ्रकार स े ग ्रामीण जनजातीय परिवारा े ं स े प ्रवासी मजद ूरी करन े वाल े 300 जनजातीय परिवारा े ं का चयन सा ैद ्द ेश्यप ूण र् निदश र्न पद्धति द्वारा किया गया ह ै जिसम ें यह पाया गया कि 14.3 प ्रतिशत उत्तरदाताआ ें का कहना ह ै कि ठ ेक ेदार क े द्वारा रहन े की व्यवस्था न करन े क े कारण किराय े स े रहन े वाल े पाय े गय े, 53.7 प ्रतिशत उत्तरदाताआ ें का कहना ह ै कि प ्रवास स्थल पर रहन े ह ेत ु ठ ेक ेदार द्वारा कच्च े भवन व झा ेपड ़ी की व्यवस्था की जाती ह ै जिसम ें पानी, जलाऊ लकड ़ी स ुविध् ाए ं रहती ह ै तथा 32.0 प ्रतिशत उत्तरदाताआ े ं का कहना ह ै कि प ्रवास स्थल पर ठ ेक ेदार द्वारा रहन े की स ुविधाए ं उपलब्ध नही ं कराइ र् जाती ह ै जिसक े कारण उन्ह ें रा ेजी-रा ेटी व दिहाड ़ी मजद ूरी पान े ह ेत ु शहरा ें म ें सड ़क किनार े ता े कही ं सम ुद ्र किनारा ें पर मलिन बस्ती क े रूप म े ं स्वय ं झा ेपडि ़या बनाकर बिना बिजली, पानी, लकड ़ी तथा शा ैचालय आदि ब ुनियादी स ुविधाआ े ं स े व ंचित जीवन-यापन कर रह े ह ै ं। अस ंगठित क्ष ेत्र म ें मजद ूरी काय र् करन े वाल े प ्रवासी श्रमिका ें का े प ्रवास स्थल पर श्रम का ूनन आ ैर प ्रवासी अन्तरा र्ज्यीय अधि् ानियमा ें स े व ंचित रखा जा रहा ह ै।
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6

मिश्रा, आन ंद म. ुति र्, et शारदा द ेवा ंगन. « भतरा जनजाति क े पर ंपरागत चिकित्सा पद्धति एव ं स्वास्थ्य का मानवशास्त्रीय अध्ययन ». Mind and Society 8, no 01-02 (18 avril 2019) : 79–86. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-81-2-201913.

Texte intégral
Résumé :
परम्परागत चिकित्सा प्रणाली मानव के ज्ञान द्वारा अर्जित चिकित्सा की ऐसी विधि है जो कई पीढि ़यों से चली आ रही है। जिसके प्रयोग से मन ुष्य कई प्रकार के असाध्य रोगों का उपचार करन े में समर्थ रहा है। आदिवासियों का जीवन मुख्यतः जंगलों पर आश्रित रहा है। मन ुष्य शुरूआत से ही अपन े भोजन, आश्रय और चिकित्सा के लिए प्रकृति पर ही निर्भर रहा है। वत र्मान में चिकित्सा प्रणाली में अंतर होने के उपरांत भी चिकित्सा पद्धंतियो का आधारभूत उद ेश्य मन ुष्य के स्वास्थ्य तथा कल्याण की कामना ही हैं। समाज में स्वास्थ्य व्यक्ति उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता है, तथा रोग मुक्ति की लालसा करता है । जनजातीय समापन में आज भी चिकित्सा पद्धति जीवित एंव सक्रिय है तथा व्यापक पैमान े पर आज भी इसका उपयोग होता ही है। वत र्मान शोध का उद ्ेश्य भतरा जनजाति मे परम्परागत चिकित्सा पद्धिति तथा उनके स्वास्थ्य के स्तर का पता लगाना है। प्रस्त ुत शोध में तथ्यों का संग्रह करन े के लिए बस्तर जिले में द ैव निद र्शन विधि के माध्यम से 81 भतरा परिवारों का चयन कर साक्षात्कार एव ं समुह चर्चा एव ं अवलोकन के माध्यम से प्राथमिक तथ्यों का संकलन किया गया है। उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के होते हुये भी जनजातीय लोग आज भी बीमार होने पर सर्वप्रथम सिरहा गुनिया के पास जात े है इसके पश्चात वो डॉक्टर के पास अपना इलाज करवाते है इससे कभी-कभी उनको गंभीर पर ेशनियों का सामना करना पडता है।
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साह ू, प. ्रवीण क. ुमार. « संत कबीर की पर्यावरणीय चेतना ». Mind and Society 9, no 03-04 (30 mars 2020) : 57–59. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20219.

Texte intégral
Résumé :
स ंत कबीर भक्तिकालीन निर्ग ुण काव्यधारा अन्तर्ग त ज्ञानमार्गी शाखा क े प ्रवर्त क कवि मान े जात े ह ैं। उनकी वाणिया ें म ें जीवन म ूल्या ें की शाश्वत अभिव्यक्ति एव ं मानवतावाद की प ्रतिष्ठा र्ह ुइ ह ै। कबीर की ‘आ ंखन द ेखी’ स े क ुछ भी अछ ूता नही ं रहा ह ै। अपन े समय की प ्रत्य ेक विस ंगतिया ें पर उनकी स ूक्ष्म निरीक्षणी द ृष्टि अवश्य पड ़ी ह ै। ए ेस े म ें पर्या वरण स ंब ंधी समस्याआ ें की आ ेर उनका ध्यान नही गया हा े, यह स ंभव ही नही ह ै। कबीर क े काव्य म ें प ्रक ृति क े अन ेक उपादान उनकी कथन की प ुष्टि आ ैर उनक े विचारा ें का े प ्रमाणित करत े ह ुए परिलक्षित हा ेत े ह ैं। पर्या वरणीय जागरूकता आ ैर स ुरक्षा की द ृष्टि म ें कबीर का महत्त्वप ूर्ण या ेगदान यह ह ै कि उन्हा ेंन े सम ूची मानव जाति का े प ्रक ृति क े द्वारा किए गय े उपकारा ें क े बदल े म ें क ृतज्ञता व्यक्त करन े की शिक्षा दी ह ै। उनक े काव्य म ें कही ं व ृक्षा ें की पत्तिया ँ आ ैर फ ूल स ंसार की नश्वरता आ ैर मन ुष्य जीवन की क्षणिकता का बा ेध कराती ह ै ता े कही ं जल का आश्रय ग ्रहण कर परमात्मा स ंब ंधी रहस्यवादी भावनाआ ें का े उद ्घाटित करती ह ै। इस प ्रकार कह सकत े ह ैं कि कबीर की वाणिया ें म ें प ्रक ृति क े विविध रूपा ें की अभिव्यक्ति द ृष्टा ंता ें क े रूप म ें र्ह ुइ ह ै। इसी स े स ंत कबीर की पर्या वरणीय जागरूकता स्वतः सिद्ध हा े जाती ह ै।
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Thèses sur le sujet "अपतन"

1

Rai, Lalita. « Tulsi `apotan` ka kavyakritiharuko bislesanatmok adhyayan तुलसी 'अपतन' -का काब्यकृतिहरुको विश्लेषणात्मक अध्ययन ». Thesis, University of North Bengal, 2006. http://hdl.handle.net/123456789/1696.

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