Artículos de revistas sobre el tema "कहानि"

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Gurjar, Prem Singh. "The tragedy of Dalit life in the story 'Mohandas'". RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 9, n.º 3 (25 de marzo de 2022): 54–57. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2022.v09i03.009.

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Resumen
In the story 'Mohandas' written by Uday Prakash, there is a very poignant depiction of grief, mental torture, struggle, annoyance, helplessness and helplessness. The story of the barbarism, immorality and downfall of the autocratic rulers is told very briefly in this long story. But being told very clearly, it gives a sharp edge to the poignancy of the story. This story is the story of the blunting of human sensibilities, the degradation of humanity. Strengthening the tradition of Hindi long story, this story depicts the real picture of our society and stays in the mind for a long time after reading. This story is so influential that for the first time in its history, the Sahitya Akademi made a story the basis of its honor. Abstract in Hindi Language: उदय प्रकाश लिखित कहानी ‘मोहनदास’ में दुःख, मानसिक प्रताड़ना, संघर्ष, खीज, बेबसी और लाचारी का बड़ा मार्मिक चित्रण हुआ है। इस लंबी कहानी में निरंकुश शासकों की बर्बरता, अनैतिकता और पतन की कथा बहुत संक्षेप में कही गई है। परंतु बहुत स्पष्ट रूप से कही जाने के कारण कहानी की मार्मिकता को तीखी धार देती हैं। यह कहानी मानवीय संवेदना के कुंद होने की, मनुष्यता के क्षरण की कहानी है। हिंदी की लम्बी कहानी की परंपरा को मजबूती देती यह कहानी हमारे समाज की यथार्थ तस्वीर दर्शाती है और पढ़ने के बाद एक लंबे समय तक जेहन में रहती है। यह कहानी इतनी प्रभावशाली है कि साहित्य अकादमी ने अपने इतिहास में पहली बार किसी एक कहानी को अपने सम्मान का आधार बनाया। Keywords:दलित, त्रासदी, बुद्धि-लब्धि, हरिजन, नवबौद्ध, भूमिहीन, यायावर।
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Gaur, Neelam. "Analytical analysis of the stories of Anamika's 'Pratinayak' collection". RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 10, n.º 2 (28 de febrero de 2023): 85–89. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2023.v10n02.018.

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The only short story collection of 'Anamika' was published in the year 1979 from 'Pratinayak' Vidya Prakashan, Kanpur. There are a total of 11 stories in this collection. In the book Anamika: An Evaluation edited by Abhishek Kashyap, Anamika expresses her views on the future of the story, saying – “Jaan hai to jahaan hai. If there is a man then there is a story. Every man is a moving story. Batras and Gapashtak are also part of the three-fourth water element from which this world is made. How will the world run without a story. Katha Kosh records all the good and bad shadows of everyone's good deeds and bad deeds, be it in a poem or a story, it is the Praja Kosh of the people in the story. Akshay deposit account of our Manisha.”1 It can be said that the story is the most popular genre among the genres of Hindi prose. The reason for this is that the story is related to the life of the individual and the society. In the words of Anamika - “The novel is a big battlefield or playground, in which different classes, castes, genders, sects try their side, but the story also creates a counter-world of selected moments. The quickness of the story calls for the skill of miniature painting—it is not so easy to create focus in a small space.”2 Abstract in Hindi Language: ‘अनामिका’ का एक मात्र कहानी संग्रह ‘प्रतिनायक’ विद्या प्रकाशन, कानपुर से सन् 1979 में प्रकाशित है। इस संग्रह में कुल 11 कहानियाँ हैं। अभिषेक कश्यप द्वारा सम्पादित पुस्तक अनामिका: एक मूल्यांकन में अनामिका कहानी के भविष्य पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहती हैं-“जान है तो जहान है। आदमी है तो कहानी है। हर आदमी एक चलती-फिरती कहानी तो है ही। बतरस और गपाष्टक भी उस तीन चैथाई जल-तत्व का हिस्सा है, जिससे यह दुनिया बनी है। बिना कहानी की दुनिया चलेगी भी कैसे। नेकियाँ-बदनामियाँ सबकी सब भली-बुरी परछाइयाँ कथा कोष ही दर्ज करता है, कविता में हो या कहानी में वही जनता का प्रजा-कोष है कहानी में। हमारी मनीषा का अक्षय जमा खाता।”1 कहा जा सकता है कि हिंदी गद्य की विधाओं में कहानी ही सर्वाधिक लोकप्रिय विधा है। इसका कारण है कहानी का व्यक्ति-समष्टि जीवन से जुड़ा होना। अनामिका के शब्दों में-“उपन्यास एक बड़ी युद्धभूमि या लीलाभूमि है, जिसमें अलग-अलग वर्ग, वर्ण, लिंग, सम्प्रदाय अपना पक्ष आजमाते हैं, पर चुनिंदा क्षणों का एक प्रतिसंसार तो कहानी भी रचती है। कहानी की क्षिप्रता मिनिएचर पेंटिंग का कौशल चाहती है-थोड़े से स्पेस में फोकस पैदा करना इतना आसान नहीं।”2 Keywords: आर्थिक संकट, अनीश्वरवाद, व्यक्ति-समष्टि, फोरमैन, एस.डी.ओ.।
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Kumari, Sunita. "Social consciousness in Kamleshwar's stories". RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 9, n.º 7 (31 de julio de 2022): 39–43. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2022.v09i07.010.

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Nayi Kahani awardee and promoter of the contemporary story movement, Kamleshwar is one of those storytellers of the post-independence era, who along with reinforcing the Premchand tradition, has given various dimensions to the Hindi story, has given it a new stage. In fact, Allahabad has an important place in the development of his literary journey. He writes – “My birthplace Mainpuri could not leave me. I could not leave Allahabad. In moments of despair, Allahabad can give me shelter." Abstract in Hindi Language: नयी कहानी के पुरस्कर्ता और समकालीन कहानी आंदोलन के प्रवर्तक कमलेश्वर स्वातंत्र्योत्तर युग के उन कहानिकारों में से हैं जिन्होंने प्रेमचंद परंपरा को पुष्ट करने के साथ-साथ हिंदी कहानी को विविध आयाम दिये हैं, नए पड़ाव दिये हैं। वस्तुतः उनकी साहित्यिक यात्रा के विकास में इलाहाबाद का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे लिखते हैं-“मैनपुरी मेरा जन्मस्थान मुझसे छूटता नहीं था । इलाहाबाद मुझसे छोड़ा नहीं जाता था। निराशा के क्षणों में इलाहाबाद मुझे पनाह दे सकता है।” Keywords: सामाजिक चेतना, मध्यवर्गीय जीवन, संवेदना, शिल्प, सामाजिक प्रतिबद्धता, समकालीन।
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singh, Anita y Dr Abhay Shankar Dwivedi. "Story-description of Dharamveer Bharti's novel: Gunanon Ka Devta". International Journal of Multidisciplinary Research Configuration 2, n.º 1 (28 de enero de 2022): 115–19. http://dx.doi.org/10.52984/ijomrc2113.

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प्रस्तुत शोध पत्र में धर्मवीर भारती के उपन्यास गुणहो के देवता का कथावस्तु विश्लेषण किया गया है। गॉड ऑफ गुनाओं' रोमांटिक भावनाओं पर आधारित एक उपन्यास है। इस उपन्यास में चंदर और सुधा के युवा मन की कोमल भावना, भावुकता और आदर्शवादी प्रेम है, दूसरी ओर खंडित नैतिकता और लुप्त होते सपनों का दर्द भी है। उपन्यास अपने समय में बहुत लोकप्रिय था इसकी लोकप्रियता का कारण जादुई रोमांस के साथ कहानी का सरल निर्माण है। प्रमुख शब्द: रोमांटिक, युवा, कोमल-भावनाएं, भावुक प्रेम
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Garg, Sushma. "Women empowerment in the story Vidha of Hindi literature". RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, n.º 10 (13 de octubre de 2022): 175–78. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i10.021.

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The rise and fall in the status of women in the Indian society is probably not seen in any other society in the history of the world. Change is the eternal law of nature. With the change of time, the restrictions made for women are getting relaxed to a great extent. Along with the spread of education, women are trying to stand equal to men in every field, but no matter how much the family attitude has changed, still women in our society do not have the freedom to voluntarily, for themselves. You can choose the field of your choice. On the other hand, women are discriminated on the basis of gender in the society. But at present women are challenging every situation by being empowered themselves. Women empowerment has appeared in both positive and negative forms in the story genre of current Hindi literature. Abstract in Hindi Language: भारतीय समाज में नारी की स्थिति में जितना आरोह व अवरोह रहा है, सम्भवतः विश्व के इतिहास के किसी दूसरे समाज में यह स्थिति देखने को नहीं मिलेगी। परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। समय परिवर्तन के साथ-साथ महिलाओं के लिए बने प्रतिबन्धों में काफी हद तक शिथिलता आती जा रही है। शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ महिलाएँ हर क्षेत्र में पुरूषों के समकक्ष आ खड़ी होने को उद्यत हैं, किंतु कितना ही पारिवारिक दृष्टिकोण परिवर्तित क्यों न हुआ हो, फिर भी हमारे समाज में महिलाओं को यह स्वतंत्रता नहीं है कि वे स्वेच्छा से, अपने लिए मनचाहे क्षेत्र का चुनाव कर सकें। दूसरी ओर समाज में महिला के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है। परंतु वर्तमान में नारी स्वयं सशक्त होकर प्रत्येक परिस्थिति को चुनौती दे रही है। महिला सशक्तिकरण वर्तमान हिन्दी साहित्य की कहानी विधा में सकरात्मक व नकारात्मक दोनों रूपों में ही प्रकट हुआ है। Keywords: महिला सशक्तिकरण, कहानी, कामकाजी, समाज, शोषण, आधुनिक सोच व पुरूष प्रधान समाज।
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Garg, Sushma. "Expression of love portrayed in Mannu Bhandari's story 'Shamshaan'". RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, n.º 4 (15 de abril de 2022): 104–8. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i04.015.

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When the book Mannu Bhandari's best love stories was studied by the researcher, it was found that in the love made by his characters in the stories of Mannu Bhandari, a very lively and beautiful depiction of the social story truth, time truth, and craft truth of the society was expressed. Has happened. The story world of his love is very simple and meaningful, which exposes many links of human heart, how the worldly creature accepts the feeling of love in different forms. By the way, love in all her stories in this book is in different forms such as 'this is the truth', the emotional truth of love in the story, the romance and loneliness of love in the height story, the truth with closed doors, the entanglement of female doubt and pain in the stories. The painting is so simple and beautiful that it seems that the characters of his stories are standing in front of us in real form. Abstract in Hindi Language: शोधार्थी द्वारा जब मन्नू भंडारी की श्रेष्ठ प्रेम कहानियाँ पुस्तक का अध्ययन किया गया तो पाया गया कि मन्नू भंडारी की कहानियों में उनके पात्रों द्वारा किए गए प्रेम में समाज के सामाजिक कथा सत्य, समय सत्य, व शिल्प सत्य का बहुत ही सजीव व सुन्दर चित्रांकन अभिव्यक्त हुआ है। उनके प्रेम का कथा संसार बहुत ही सहज व सार्थक है, जोकि मानव के अन्र्तमन की बहुत सी कड़ियों को उजागर करता है, कि किस तरह से सांसारिक प्राणी विभिन्न रुपों में प्रेम भाव को ग्रहण करता है। वैसे तो इस पुस्तक में उनकी सभी कहानियों में प्रेम विभिन्न रुपों में जैसे कि ’यही सच है, कहानी में प्रेम का भावनात्मक सत्य, ऊँचाई कहानी में प्रेम का रोमांस व अकेलापन, बंद दरवाजों के साथ सत्य कहांनियों में नारी संदेह की अन्र्तव्यथा व पीड़ा का इतना सहज व सुन्दर चित्रांकन है कि लगता है कि उनकी कहानियों के पात्र साकार रुप जीवन्त होकर, हमारे सामने खडे़ है। Keywords: लौकिकता, भावनात्मक सत्य, प्रतीकात्मक रूप व्यंग्यात्मक स्वर, आघ्यात्मिक भावना, जिजीविषा।
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Radhwani, Kukanta y Anita Singh. "Conflict of married women in stories of Manu Bhandari". International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 6, n.º 5 (31 de mayo de 2018): 54–58. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v6.i5.2018.1425.

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Manu Bhandari is a socialist writer of the post-independence era. His writings have the unique ability to catch macro and subtle changes coming in the society on the right surface. The effect of changes is always double - external and internal. One influence crushes a person from inside, and the other society gives equal support in making life hollow. The writer has raised the problems of married life on a double level, in her story she has depicted the subtle process of changing the relationship between the male-female traditional macro relationship. Manu Bhandari considers woman to be indispensable with the man in life, but she is not blind to her husband nor should she carry out the work of a housewife, only a machine. She also rivals her husband in political life to fulfill her principles, ideals and even marries or remarries when she feels alienated from her husband. Manu Bhandari creates various forms of woman in her story with full ease and seriousness to her modern woman, not as a woman draped by traditions, carrying the burden of slavery and slavery. मन्नू भंडारी स्वातंत्रोत्तर काल की समाजधर्मी लेखिका हैं। समाज में आने वाले स्थूल और सूक्ष्म परिवर्तनों को सही धरातल पर पकड़ने की अपूर्व क्षमता उनकी लेखनी में है। परिवर्तनों का प्रभाव सदा ही दोहरा होता है - बाह्य और आतंरिक। एक प्रभाव व्यक्ति को अंदर से कुरेदता है तो दूसरा समाज जीवन को खोखला बना देने में बराबर सहयोग पहुँचाता है। लेखिका ने दांपत्य-जीवन की समस्याओं को दोहरे स्तर पर उठाया है, उन्होंने अपनी कहानी में नारी-पुरुष परंपरागत स्थूल संबंध में बदलते संबंध की सूक्ष्म प्रक्रिया का चित्रण किया है। मन्नू भंडारी नारी जीवन में पुरुष के साथ को अनिवार्य मानती है लेकिन वह पति की अंधनुगामी नहीं है और न ही गृहिणी के दायित्व का निर्वाह करने वाली काम चलाऊ, मशीन मात्र। अपने सिद्धांतों, आदर्शों की पूर्ति के लिए वे राजनीतिक जीवन में भी पति की प्रतिद्वंदिता करती है और पति से अलगाव महसूस होने पर विवाह-विच्छेद या पुनर्विवाह भी करती है। मन्नू भंडारी अपनी कहानी में नारी के विविध स्वरूपों को रचकर उसके आधुनिक नारी को पूरी सहजता और संजीदगी के साथ उकेरती है, न की परंपराओं से दबी, कुचली और गुलामी का भार ढोती हुई नारी के रूप में।
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K.P., Ushakumari. "PSYCHOLOGY IN YASHPAL'S NOVELS". International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 8, n.º 12 (5 de enero de 2021): 225–27. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v8.i12.2020.2769.

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English: Yashpal's literature is an expression of revolutionary sentiments and ideas. His literature is placed on the ground of reality, in which the struggle of generations and the interruption of social life is highlighted. Being a true Marxist litterateur, he is an advocate of the "Art for Life". He successfully ran his pen in all the disciplines of literature such as story, novel, montage, travelogue, translation, essay. Yashpal is the second revolutionary novelist after Premchand. His major novels are 'Dada Comrade', 'Deshadrohi', 'Divya', 'Party Comrade', 'Man's Form', 'Anita', 'Jhutha-Sach', 'Twelve Hours' and 'Why How'? . Hindi: यषपाल का साहित्य क्रांतिकारी भावों और विचारों का अभिव्यक्त रूप है । उनका साहित्य यथार्थ की धरती पर रखा गया है, जिसमें पीढ़ियों का संघर्ष और सामाजिक जीवन का अन्तर्द्धन्द्ध मुखरित है । एक सषक्त माक्र्सवादी साहित्यकार होने के नाते वे ‘‘कला जीवनके लिए” मत के समर्थक हैं । उन्होनें साहित्य की सभी विधाओं जैसे कहानी, उपन्यास, एकांकी, यात्रावर्णन, अनुवाद, निबन्ध में अपनी कलम सफलतापूर्वक चलायी । प्रेमचन्द के उपरांत यषपाल ही दूसरे क्रांतिकारी उपन्यासकार हैं। ‘दादा कामरेड’, ’देषद्रोही’, ’दिव्या’, ‘पार्टी कामरेड’, ‘मनुष्य के रूप’, ‘अनिता’, ‘झुठा-सच’, ‘बारह घंटे’ तथा ‘क्यों कैसे’?, आदि उनके प्रमुख उपन्यास हैं ।
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Sharma, Seema y Abha Tiiwari. "ENVIRONMENTAL PROTECTION AND HUMAN SENTIMENT IN TODAY'S CONTEXTS". International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, n.º 9SE (30 de septiembre de 2015): 1–2. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9se.2015.3273.

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Human and nature complement each other. Man's life is not possible without nature i.e. environmental protection. He abandoned the idea of ​​conservation, exploiting nature due to the autism thinking of man. Felling trees, polluting rivers, drying wells, fumes and dusty dust, air filled with pesticide poison, are telling the story of man's dry sensation.We are all children of nature. Our body is made of five elements: land, air, water, sky and fire. These five elements are the environment. If one of them is polluted, then human life is also affected. मानव एवं प्रकृति एक दूसरे के पूरक हैं। मनुष्य का जीवन प्रकृति अर्थात् पर्यावरण संरक्षण के बिना संभव नहीं है। मनुष्य की आत्मकेंद्रित सोच के कारण प्रकृति का दोहन करते हुए उसने संरक्षण का विचार त्याग दिया। कटते हुए वृक्ष, प्रदूषित होती हुई नदियाँ, सूखते हुए कुँए, धुँए और धूलका गुबार बनती हुई हवा, कीटनाशकों के जहर से भरी हुई खाद्य सामग्री, मनुष्य की सूखती हुई संवेदना की कहानी कह रहे हैं। हम सब प्रकृति की संतान है। पँचतत्वों से निर्मित है, हमारा शरीर: भूमि, वायु, जल, आकाश एवं अग्नि। ये पाँच तत्व ही पर्यावरण हैं। इनमंे से एक भी यदि प्रदूषित होता है तो मानव जीवन भी प्रभावित होता है।
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त्रिपाठी, योगेन्द्र प्रसाद y प्रीती भारती*. "भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में सूचना प्रौद्योगिकी की नई पहल". Humanities and Development 17, n.º 2 (8 de diciembre de 2022): 89–94. http://dx.doi.org/10.61410/had.v17i2.76.

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विश्व की अधिकांश जनसंख्या ग्रामों में निवास करती है और विश्व इतिहास में ग्रामों के निर्माण की कहानी उस समय से प्रारंभ होती है, जब मानव ने घुमंतू जीवन छोड़कर एक स्थान पर रहकर कृषि कार्य प्रारंभ किया। भारत प्रारंभ से ही गांवों का देश रहा है। जिसकी आजीविका कृषि पर आधारित है किंतु वर्तमान समय में भारत के ग्रामीण क्षेत्र काफी समृद्ध हो चुके हैं। यहां बसने वाले प्रत्येक नागरिक में शिक्षा के प्रति थोड़ी बहुत जागरूकता है एवं कृषि कार्यों को उन्नत बनाने के लिए नई-नई प्रौद्योगिकियों के ज्ञान का भी पूर्ण रूप से प्रयोग किया जा रहा है। मानव जीवन में नई-नई जागरूकता को लाने में प्रौद्योगिकीकरण का बड़ा योगदान रहा है। वर्तमान में प्रौद्योगिकी में होने वाले परिवर्तनों ने समाज के सभी क्षेत्रों में नई दिशाएं प्रदान की है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्र भी महत्वपूर्ण है। भारत आज ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का मजबूत केंद्र बनता जा रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी देश के विकास की सीढ़ी है, देश को विकास की धारा से जोड़ने का एक सशक्त माध्यम क्योंकि पलक झपकते हर पल की खबर इस माध्यम से प्राप्त हो जाती है। आज ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जो इससे अछूता हो। सूचना प्रौद्योगिकी का वास्तविक अर्थ सूचना तैयार करने, एकत्र करने, प्रोसेस करने, भंडारित करने और उसे प्रदान करने के साथ इन सब को संभव बनाने वाली प्रक्रियाओं और यंत्रों से है।
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तिवारी, सत्यपाल. "मुक्तिबोध की कथा भाषा". Humanities and Development 17, n.º 2 (8 de diciembre de 2022): 111–17. http://dx.doi.org/10.61410/had.v17i2.81.

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मुक्तिबोध की कथा साहित्य की भाषाः- भाषा 26 और अर्थ का सत्युज्य है वह शब्दार्थों का संवहन करने वाली होती है। अर्थो का जितना है संबल और प्रांजल वहन भाषा करेगी । वह उतनी है बलवती और अर्थवती होगी। यही भाषारथी शक्ति है। भाषा निरन्तर परिवर्तन और विकास की प्रक्रिया से गुुजरती चलती है। अपने को समयानुकूल बनाती चलती है यह उसका गुण है। चाहे वह काव्य की भाषा हो या कि गद्य की हिन्दी भाषा हो या फिर अन्य कोई भाषा। गद्य के विकास में साथ ही साथ उसकी भाषा संरचना के विकास की भी प्रक्रिया निरन्तर उतार-चढ़ाव से होकर गुजर रही है। जैसे-जैसे गद्य रूपों का विकास और विस्तार बढ़ रहा है वैसे ही भाषा से सम्बन्धित नयी-नयी समस्याएँ भी सामने आयी। उपन्यास और कहानी के तन्त्रागत विकास और कथा प्रस्तुति की विदधता के कारण भाषागत संभावनाओं का सूक्ष्मतर बोध भी विकसित हुआ। कथा प्रस्तुति से सम्बद्ध नयी दीक्षा का प्रथावन केवल कथाकार पर पग आपितु उसके पाठयों पर भी पड़ा। उसकी अपेक्षाएँ भी बढ़ रही थी। वह गद्य भाषा में और अधिक संभावनाएँ तलाश रहा था। इस तलाश का ही वर्तमान की पाठ्य की विवेचक बुद्धि की लगातार बढ़ रही थी। यही कारण है कि कथावार निरन्तर एक नयी कथा भाषा गढ़ रहे थे। भाषा से सम्बन्धित इन तमाम समस्याओं से जुड़कर हिन्दी कथा भाषा का नया स्वरूप निर्मित और विकसित हो रहा था। इस दृष्टि से प्रेमचन्द का योगदान महत्वपूर्ण है। उनके हाथों हिन्दी कथा भाषा होती हुई दिखाई देती है। आगे चलकर अज्ञेय, धर्मवीर भारती निर्मलवर्मा तथा मुक्तिबोध अपने-अपने कथा साहित्य में भाषा प्रयोग के अनेक स्तरों से गुजरते हैं। भाषा में नया प्रयोग भी करते हैं। उसे एक मुकम्मल स्वरूप प्रदान करते हुए दिखाई देते है।
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वर्मा, सरिता y राहुल कुमार. "आप्रवासी हिन्दी कहानियों में उपभोगतावादी संस्कृति का संबंधों पर प्रभाव". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR HUMANITY SCIENCE AND ENGLISH LANGUAGE 9, n.º 48 (1 de diciembre de 2021): 12016–19. http://dx.doi.org/10.21922/srjhsel.v9i48.8269.

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हिन्दी साहित्य का क्षेत्र विस्तृत फलक पर फैला हुआ है। आप्रवासी लेखन को हिन्दी साहित्य के फैलते हुए फलक का विस्तार कहा जा सकता है। आप्रवासी को विदेशों में बसे भारतीयों का साहित्य, भारतवंशी अथवा भारत के पार का रचना संसार आदि नामों से जाना जाता है। इसका अपना एक अलग समाजशास्त्र है। विस्तृत फलक पर साहित्य का विस्तार होने के कारण इसको एक निश्चित सीमा अथवा किसी एक पैमाने में विश्लेषित नहीं किया जा सकता है। प्रवासी साहित्य के अन्तर्गत मॉरीशस, फिजी, त्रिनिदाद, गुयाना के साहित्य का अपना समाजशास्त्र है। ब्रिटेन में लिखी गई कहानियाँ उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो भारत से अवसरों और पैसों की तलाश में ब्रिटेन और यूरोप तो चले गए। किन्तु वहाँ की संस्कृति, समाज, वहाँ की नीतियों से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाए और खुद को असहज अनुभव करते हैं। तीव्र औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप पश्चिमी समाज में मानव जीवन अधिकाधिक आराम तलब एवं ऐश्वर्यपूर्ण जीवन शैली का आदी हो गया। मशीनीकरण और यंत्रीकरण के कारण बाजार में नए-नए उत्पाद सर्वसुलभ हो गए। मानव जीवन को इन उत्पादों को परोसने के लिए उसके अवचेतन में छिपी लालसाओं को जाग्रत किया गया और इस कार्य को विज्ञापन जगत् ने आसान बनाया। मानव जीवन अधिक से अधिक सुविधाओं को लूटने की दिशा में अग्रसारित हुआ। जिसके कारण वह भौतिकतापूर्ण जीवन शैली और उपभोगतावादी दर्शन को अपने जीवन में अधिक महत्त्व देने लगा। जिससे समाज में काफी उथल-पुथल और टूट-फूट हुई, मानवीय संबंध छिन्न-भिन्न हो गए। पुरानी मान्यताएँ, परंपराएँ और सिद्धान्त सभी संकट के घेरे में आ गए। आप्रवासी कहानी पश्चिमी समाज के उपभोगतावादी दर्शन के कारण संबंधों में आए बदलाव पर गहनता से विचार-विमर्श करने के साथ-साथ ही एक विकल्प ही खोज भी करती है।
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Kumar Tomar, Ashish. "PSYCHOLOGICAL USE OF COLORS IN THE FIELD OF MEDICINE". International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 2, n.º 3SE (31 de diciembre de 2014): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3se.2014.3647.

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Color is an integral part of our life. Colors have such a deep relationship with human life that one cannot realize human happiness in a colorless world. It is only through colors that we can see from the greenery of the nature to the golden light of the sun, the blue of the sky, the black of the clouds and the light of the moon. The seven-color rainbow line drawn in the clouds tells a beautiful story of each color. Seeing which the mind becomes a part of the colorful world. Colors also have a definite role in the multi-colored life of human beings. Colors have a profound effect on the human brain. Modern psychologists believe that the likes of color and influence affect the entire equation of a man's life. This strength of colors has also made it useful for healing. There are many diseases, colors are used for the treatment of them. Due to these characteristics, it has been named color therapy. रंग हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। रंगों का मानव जीवन के साथ इतना गहरा रिश्ता है कि बेरंग दुनिया में मानव खुशियों का एहसास ही नहीं कर सकता। रंगों के माध्यम से ही प्रकृति की हरियाली से लेकर सूरज की सुनहरी रोशनी, आसमान का नीलापन, बादलों की काली घटाएं और चन्द्रमा का उजलापन देख पाते है। बादलों में खिंचती सात रंगों की इन्द्रधनुषी रेखा प्रत्येक रंग की सुन्दर कहानी बयां करती है। जिसे देखकर मन रंगीन दुनिया का हिस्सा बन जाता है। मनुष्य के बहुरंगों जीवन में रंगों की भी एक निश्चित भूमिका होंती है। रंग मनुष्य के मस्तिष्क पर गहरा असर डालते है। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों की मान्यता है कि रंगों की पसन्द व प्रभाव से आदमी की जिन्दगी का पूरा समीकरण प्रभावित होता है। रंगों की इस ताकत ने उसे उपचार के लिए भी उपयोगी बना दिया है। कईं सारी बीमारियाँ है, जिनके उपचार के लिए रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। इन खूबियों के कारण इसे कलर थेरेपी यानी रंग चिकित्सा का नाम दिया गया है।
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दीप्ति Diptee, श्वेता Sweta. "समकालीन विमर्श के विभिन्न आयाम". Pragya Darshan प्रज्ञा दर्शन 5, n.º 1 (15 de febrero de 2023): 15–18. http://dx.doi.org/10.3126/pdmdj.v5i1.52535.

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यह सदी विमर्शों की सदी है । यानि समाज की किसी भी समस्या पर चर्चा–परिचर्चा, संवाद, तर्क–वितर्क आदि । दूसरे शब्दों में कहा जाये तो जब व्यक्ति किसी समूह में किसी विषय पर चिन्तन अथचा चर्चा–परिचर्चा करता है तो उसे विमर्श कहा जाता है या जब कोई व्यक्ति किसी विषय को लेकर अकेले में गहन, चिन्तन, मनन करके किसी समूह में जाकर उस विषय पर अन्य व्यक्तियों से तर्क–वितर्क करता है तो उसे विमर्श कहते हैं ।संस्कृत, हिन्दी तथा अंग्रेजी शब्दकोशों में बहुत से विद्वानों द्वारा विमर्श शब्द को परिभाषित किया गया है । डॉ भोलानाथ के अनुसार विमर्श का अर्थ है–‘‘तबादला–ए–खयाल, परामर्श, मशविरा, राय–बात, विचार विनिमय, विचार विमर्श, सोच विचार।’’ ज्ञान शब्दकोश में विमर्श का तात्पर्य ‘विचार, विवेचन, परीक्षण, समीक्षा, तर्क, ज्ञान।’ आदि के रूप में अंकित किया गया है । मानक हिन्दी कोश में विमर्श का अर्थ इस प्रकार है –‘सोच विचार कर तथ्य या वास्तविकता का पता लगाना । किसी बात या विषय पर कुछ सोचना समझना । विचार करना । गुण–दोष आदि की आलोचना या मीमांसा करना (डेलिबरेशन)। जाँचना और परखना । किसी से परामर्श या सलाह करना आदि ।आज समाज का हर वह तबका जो अधिकारों से वंचित है उसने अपने हक, अधिकार और अपनी अस्मितागत पहचान के लिए निर्णायक लड़ाई छेड़ रखी है । ध्यान देने की बात यह है कि यह लड़ाई किसी के विरूद्ध नही, बल्कि अपने या अपने समुदाय के पक्ष में लड़ी जा रही है । इन लड़ाइयों के पीछे एक सुविचारित दर्शन कार्य कर रहा है । हिंदी साहित्य में समाज के ज्वलंत विषयों को कहानी, कविता, उपन्यास, आत्मकथा और अन्य विधाओं के माध्यम से समाज का ध्यान अपनी ओर खींचा जा रहा है । शोषित समाज के हक के लिए लेखन कार्य किया जा रहा है । विमर्श साहित्य वर्तमान समय में लगभग सभी विश्वविद्यालयों के हिंदी या अन्य भाषाओं के पाठ्यक्रम का हिस्सा है । प्रस्तुत आलेख में साहित्यिक विमर्श के आयामों पर चर्चा की गई है ।
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Bachheti, Ashutosh. "Concept of values and value development through educational process". RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 9, n.º 3 (15 de marzo de 2024): 229–35. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2024.v09.n03.024.

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In the presented research article, the concept of values, their classification and their development through the educational process has been reviewed. Literature review has been used as the study method and various online and offline sources have been used to collect literature. A comparative review of literature was used as a method of analysis. On the basis of content analysis, it can be concluded that values are the preferences necessary for a person's decision which are related to his interests and needs. The concept of values is multidimensional and it is related to all aspects of life like social, political, economic, moral etc. Besides, the multidimensional approach of classification of values relates values to all aspects of life like social, political, economic, moral etc. The concept of value development can be successfully implemented through value based education. It can be done by giving priority to reinforcement, free choice and consciousness and using methods like meditation, value clarification, visual perception, role playing, storytelling, anecdotes, group singing and dance etc. and friendly behavior of the teacher. Abstract in Hindi Language: प्रस्तुत शोध आलेख में मूल्यों की संकल्पना, इनके वर्गीकरण एवं शैक्षिक प्रक्रिया द्वारा इनके विकास की समीक्षा की गई है। अध्ययन विधि के रूप में साहित्यिक समीक्षा का प्रयोग किया गया है एवं साहित्य संकलन के लिए विभिन्न आॅनलाइन एवं आॅफलाइन स्रोतों का प्रयोग किया गया है। विश्लेषण विधि के तौर पर साहित्य की तुलनात्मक समीक्षा की गई। विषयवस्तु विश्लेषण के आधार पर निष्कर्ष स्वरूप कहा जा सकता है कि मूल्य किसी व्यक्ति के निर्णय के लिए आवश्यक वरीयताएं है जो कि उसकी रुचियों तथा आवश्यकताओं से सम्बन्धित होती हैं। मूल्यों की संकल्पना बहुआयामी है तथा यह जीवन के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, नैतिक आदि सभी पक्षों से सम्बन्धित होती है। साथ ही मूल्यों के वर्गीकरण का बहुआयामी दृष्टिकोण मूल्यों को जीवन के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, नैतिक आदि सभी पक्षों से सम्बन्धित करता है। मूल्य विकास की धारणा को मूल्य आधारित शिक्षा के अन्तर्गत, पुनर्बलक, स्वतंत्र चयन और चेतना को प्राथमिकता देकर, ध्यान, मूल्य स्पष्टीकरण, दृश्य प्रत्यक्षीकरण, भूमिका निर्वहन, कहानी कथन, उपाख्यान, सामूहिक गायन तथा नृत्य आदि विधियों के प्रयोग एवं शिक्षक के मित्रवत् व्यवहार के द्वारा सफलतापूर्वक मूर्त रूप प्रदान किया जा सकता है। Keywords: मूल्य, मूल्य वर्गीकरण एवं मूल्य आधारित शिक्षा।
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Jain, Rupali. "CLASSICAL EXPERIMENTS IN CINE MUSIC: IN THE CONTEXT OF ASAVARI THAT". International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, n.º 1SE (31 de enero de 2015): 1–4. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3431.

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We should consider the beginning of film music with the advent of speaking films. In the era of silent films, there used to be an orchestra near the screen in big cities, playing music suited to the changing emotions of the on-screen story, but the lyrics also came as an integral part of the film along with the speaking films and musicians Also has a separate identity. So the first cine music and its composer, we will consider Feroz Shah Mistry, the composer of the first speaking film "Alamara", released on 14 March 1931 at the Majestic Cinema in Mumbai and the first cine song "De De Khuda Ke Naam Pe Pyare". , There is strength to give away, if you want something, if you ask me, you will have the courage to accept it. The singer of this song, the actor of the same film, WM. It was Khan, who sang it in the character of Fakir. The song was composed with a tabla and a harmonium, but unfortunately it could not be recorded, the songs of the ragas in the film also came from the same film, which was sung by Munni Bai, "Apne Maula Ki Main Jogan" Banungi ", the song was based on the raga" Bhairavi ". फिल्म संगीत का आरंभ हमें बोलती फिल्मों के आगमन से ही मानना चाहिए। मूक फिल्मों के दौर में बड़े शहरों में स्क्रीन के पास एक आॅरकेस्ट्रा रहा करता था, जो परदे पर चल रही कहानी के बदलते भावों के अनुकूल संगीत बजाया करता था, पर बोलती फ़िल्मों के साथ गीत-संगीत भी फ़िल्म का अंतरंग हिस्सा बनकर आए और संगीतकार की भी एक अलग पहचान बनी। अतः प्रथम सिने संगीत और उसका संगीतकार हम 14 मार्च, 1931 को मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा में रिलीज प्रथम बोलती फिल्म ’’आलमआरा’’ के संगीतकार फिरोज शाह मिस्त्री को ही मानेंगे तथा पहला सिने गीत ’’दे दे खुदा के नाम पे प्यारे’’, ताकत है गर देने की, कुछ चाहे तो अगर माँग ले मुझसे, हिम्मत हो गर लेने की ’’ को मानेंगे। इस गीत के गायक इसी फिल्म के अभिनेता डब्ल्यू.एम. खान थे, जिन्होंने इसे फ़कीर के किरदार मंे गाया था। इस गीत को मात्र तबले और एक हारमोनियम के साथ सृजित किया गया था, किंतु दुर्भाग्यवश इसका रिकार्ड नहीं बन सका, फिल्म में रागों पर आधारित गीतों का चलन भी इसी फिल्म से आया, जिसमें मुन्नी बाई का गाया, ’’अपने मौला की मैं जोगन बनूँगी ’’, यह गीत राग ’’भैरवी’’ पर आधारित था।
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Punam, Rajesh Kumar Sharma y Shivani Sharma. "Analysis of the representation of women's struggles for empowerment in the literature of Maitreyi Pushpa". RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 9, n.º 4 (15 de abril de 2024): 18–22. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2024.v09.n04.003.

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Maitreyi Pushpa's literary works deeply depict the experiences, struggles and aspirations of women in the socio-cultural landscape of India. The objective of this research paper is to critically analyze how Maitreyi Pushpa represents the struggle for women's empowerment through her literary works. It highlights the nuanced portrayal of female characters in Maitreyi Pushpa's writings, exploring the multifaceted dimensions of their fight against patriarchy, social norms and institutional oppression. Based on feminist literary theory and post-colonial perspectives, the analysis examines how Maitreyi Pushpa's narratives reflect the realities of Indian women, particularly those from marginalized communities, who face gender inequality, discrimination and subordination. grapples with issues of. The representation of women's organization and resistance in Maitreyi Pushpa's works is central to the examination. Through vivid characterization and compelling storytelling, Maitreyi Pushpa highlights the courage, resilience and determination of her female characters as they overcome societal barriers and confront oppressive structures. These characters emerge as symbols of defiance and empowerment, inspiring readers to question existing power structures and advocate for gender justice. Abstract in Hindi Language: मैत्रेयी पुष्पा की साहित्यिक कृतियाँ भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य में महिलाओं के अनुभवों, संघर्षों और आकांक्षाओं का गहन चित्रण करती हैं। इस शोध पत्र का उद्देश्य आलोचनात्मक विश्लेषण करना है कि मैत्रेयी पुष्पा अपनी साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण संघर्ष का प्रतिनिधित्व कैसे करती हैं। यह मैत्रेयी पुष्पा के लेखन में महिला पात्रों के सूक्ष्म चित्रण पर प्रकाश डालता है, पितृसत्ता, सामाजिक मानदंडों और संस्थागत उत्पीड़न के खिलाफ उनकी लड़ाई के बहुमुखी आयामों की खोज करता है। नारीवादी साहित्यिक सिद्धांत और उत्तर-औपनिवेशिक दृष्टिकोण पर आधारित, विश्लेषण इस बात की जांच करता है कि कैसे मैत्रेयी पुष्पा की कथाएं भारतीय महिलाओं की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करती हैं, विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों से, जो लैंगिक असमानता, भेदभाव और अधीनता के मुद्दों से जूझती हैं। मैत्रेयी पुष्पा के कार्यों में महिला संगठन और प्रतिरोध का प्रतिनिधित्व ही परीक्षा का केंद्र है। ज्वलंत चरित्र-चित्रण और सम्मोहक कहानी कहने के माध्यम से, मैत्रेयी पुष्पा अपनी महिला पात्रों के साहस, लचीलेपन और दृढ़ संकल्प को उजागर करती है क्योंकि वे सामाजिक बाधाओं से गुजरती हैं और दमनकारी संरचनाओं का सामना करती हैं। ये पात्र अवज्ञा और सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में उभरते हैं, जो पाठकों को मौजूदा सत्ता संरचनाओं पर सवाल उठाने और लैंगिक न्याय की वकालत करने के लिए प्रेरित करते हैं। Keywords: साहित्यिक सिद्धांत, महिला सशक्तिकरण, नारीवादी साहित्य, सामाजिक बाधा, प्रतिनिधित्व, लैंगिक संघर्ष, भारतीय समाज।
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Chanda, Varsha. "Sensibility and craft in the stories of 'Gitanjali Shree' story collection ‘Yahan Hathi Rahte The’". RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, n.º 3 (14 de marzo de 2023): 292–97. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n03.036.

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'Yahan Hathi Rahte The’ is the fifth story-collection of Gitanjali Shree. Eleven stories are collected in this, looking closely at the race of time and the changing times. Raising new hopes and opening new avenues. Time also entered us like a mite. Always making the human wandering between happiness-sorrow, joy-depression, hope-desperation a little more pathetic, a little more ridiculous. These stories expose opposing sentiments and ideas layer by layer. Their specialty is the artistic achievement, the grace of language and craft according to the subject matter. The medium, the form and the subject matter are uniform here. For example, the despondency at the time of death in 'Iti', the depression of the end of love in 'Thakaan', the mood of frenzy in 'Chakarghinni', or the celebration of pure joy in 'March Mother and Sakura' is the language used respectively. It becomes the language of malaise, depression, hysteria and celebration. But ultimately these are stories of sadness. Sorrow comes in many, many times and in many forms. The sorrow of communal violence in ‘Yahan Hathi Rahte The’ and 'Aajkal', the devastation of nature and the sorrow of separation from it in ‘Itana Aasman’, the sorrow of impending untimely death in 'Bulldozer' and 'Titliyaan', 'Thakaan' and Sadness of love seeping in ' Lautati Aahat'. Another sorrow, with great intensity, comes in 'Chakarghinni'. Sadness of the helplessness of the modern woman even in our time of women's freedom and women's empowerment. These stories reach the changing multifaceted reality of our lives through very crooked paths. Introducing you to a completely different, distinctive and innovative story-writing. Abstract in Hindi Language: ’यहाँ हाथी रहते थे’ गीतांजलि श्री का पाँचवाँ कहानी-संग्रह है। समय की भागदौड़ एवं बदलते वक़्त को बारीकी से देखती इसमें ग्यारह कहानियाँ संग्रहित हैं। नई उम्मीदें जगाता और नए रास्ते खोलता वक़्त। हमारे अन्दर घुन की तरह घुस गया वक़्त भी। सदा सुख-दुःख, आनन्द-अवसाद, आशा-हताशा के बीच भटकते मानव को थोड़ा ज़्यादा दयनीय, थोड़ा ज़्यादा हास्यास्पद बनाता वक़्त। विरोधी मनोभावों और विचारों को परत-दर-परत ये कहानियाँ उघाड़ती हैं। इनकी विशेषता कलात्मक उपलब्धि हैकृभाषा और शिल्प का विषयवस्तु के मुताबिक़ ढलते जाना। माध्यम, रूप और कथावस्तु एकरस-एकरूप हैं यहाँ। मसलन, ‘इति’ में मौत के वक़्त की बदहवासी, ‘थकान’ में प्रेम के अवसान का अवसाद, ‘चकरघिन्नी’ में उन्माद की मनःस्थिति, या ‘मार्च माँ और साकुरा’ में निश्छल आनन्द के उत्सव के लिए इस्तेमाल की गई भाषा ही क्रमशः बदहवासी, अवसाद, उन्माद और उत्सव की भाषा हो जाती है। पर अन्ततः ये दुःख की कहानियाँ हैं। दुःख बहुत, बार-बार और अनेक रूपों में आता है इनमें। ‘यहाँ हाथी रहते थे’ और ‘आजकल’ में साम्प्रदायिक हिंसा का दुःख, ‘इतना आसमान’ में प्रकृति की तबाही और उससे बिछोह का दुःख, ‘बुलडोज़र’ और ‘तितलियाँ’ में आसन्न असमय मौत का दुःख, ‘थकान’ और ‘लौटती आहट’ में प्रेम के रिस जाने का दुःख। एक और दुःख, बड़ी शिद्दत से, आता है ‘चकरघिन्नी’ में। नारी स्वातंत्र्य और नारी सशक्तीकरण के हमारे जैसे वक़्त में भी आधुनिक नारी की निस्सहायता का दुःख। हमारी ज़िन्दगी की बदलती बहुरूपी असलियत तक बड़े आड़े-तिरछे रास्तों से पहुँचती हैं ये कहानियाँ। एक बिलकुल ही अलग, विशिष्ट और नवाचारी कथा-लेखन से रू-ब-रू कराते हुए । Keywords: संवेदना, शिल्प, अवसाद, आशा-हताशा, समाजशास्त्रीय परख, मॉडर्निटी, आत्मकथात्मक शैली।
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Jha, Avinash Kumar. "Relevance of Buddhist Education in the Context of Current Global Education: A Study". RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 9, n.º 7 (31 de julio de 2022): 01–05. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2022.v09i07.001.

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The concept of education is a burning topic in the updated academic field. The relevance and continuity of education lies in its presentation according to the demands of the changing environment. The nature of education has changed rapidly in recent times. The trend which has shown the most creativity and stability in the latest styles of social science is the stream of cultural writing. From George Heigl to Lynn Hunt, this type of belief has been shown. Today neo-cultural sociology is in vogue. In fact, the study of education is from rationalist and structuralist tendencies in the academic field. The importance of education is undeniably important in the crucial elements of the overall development of the individual. The concept of education has been the most discussed and competitive of all types of discourse. There have always been different views and forms of education in every society. The origin of which can be traced to the overall development of human personality. India also has a well-developed tradition of education since ancient times. In this sequence, the large mass base of Buddhist education as well as its useful nature and purpose shows its all-time importance. In the Jataka story and Buddhist literature, in the course of Buddhist education, emphasis has been laid on Sanskrit, grammar, Buddhist thought, mathematics, philosophy, medicine, crafts, ethics, environment, etc. And its usefulness has been shown by incorporating the need of the present society. In the Buddhist period, education was the means of all round development of man. Buddhist education was the only means of mental, physical, intellectual and spiritual upliftment. The relevance of Buddhist education in the present day is automatically reflected in the elements contained in it. Also, the element contained in its form proves its usefulness in the updated global context. Every modern concept, power, ideology tries to verify itself on the basis of history. History always gives legitimacy to modern concepts, so every society tries to write historiography of concepts keeping in mind its goals and objectives. Discussions about the questions of education in India can be seen with the Sanatan tradition of the times like Vedas, Puranas, Arthashastra etc. along with the Buddhist, Jain and Charvaka traditions. In today's time people are interpreting education in their own way. Today there is fierce competition in the field of education. Two integral elements of education have been described in India - spiritual and physical i.e. theoretical and practical. Therefore, the basic element of education is the overall development of human personality and the need of society or secular life. In the present article, it will be our effort to discuss the background of Buddhist education from the global level to the global level of current education and review the current thinking. Abstract in Hindi Language: अद्यतन अकादमिक क्षेत्र में शिक्षा की अवधारणा एक ज्वलंत विषय है। शिक्षा की प्रासंगिकता एवं निरन्तरता बदलते परिवेश की माॅग के अनुरुप उसकी प्रस्तुति से है। शिक्षा का स्वरुप हाल के समयों में तेजी से बदला है। समाज विज्ञान की अद्यतनशैलियों में जिस प्रवृति ने सबसे अधिक रचनात्मकता प्रदर्शित की है, तथा स्थायित्व दिखाया है- वह सांस्कृतिक लेखन की धारा है। जार्ज हिगल से लिन हंट तक ने इसप्रकार की मान्यता को दर्शाया हैं। आज नव सांस्कृतिक समाजविज्ञान प्रचलन में है। वस्तुतः शिक्षा के अध्ययन अकादमिक क्षेत्र में बुद्धिवादी एवं संरचनावादी प्रवृतियों से है। व्यक्ति के समग्र विकास के निर्णायक तत्वो में शिक्षा का महत्व निर्विवाद रुप से महत्वपूर्ण है। सभी प्रकार के विमर्श में शिक्षा की अवधारणा सबसे अधिक विमर्शित तथा प्रतिस्पर्धात्मक रही है। शिक्षा के विभिन्न मत एवं स्वरुप प्रत्येक समाज में सदैव रहा है। जिसका मूल मनुष्य के व्यक्तित्व का समग्र विकास में चिन्हित किया जा सकता है। भारत में भी प्राचीन काल से शिक्षा की विकसित व्यापक परम्परा रही है। इस क्रम में बौद्ध शिक्षा का वृहत जन आधार के साथ साथ इसके जनोपयोगी स्वरुप एवं उददेष्य इसकी सर्वकालीक महत्ता को दर्शाता है। जातक कहानी एवं बौद्ध साहित्य में बौद्ध शिक्षा के क्रम में समाज के सभी वर्ग को शिक्षा में संस्कृत, व्याकरण, बौद्ध विचार, गणित, दर्शन के अतिरिक्त चिकित्सा, शिल्प, नैतिकता, पर्यावरण आदि पर बल दिया गया हैं, जिससे मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास एवं वर्तमान समाज की आवश्यकता को समाहित कर इसकी उपयोगिता को दर्शाया गया हैै। बौद्ध काल में शिक्षा मनुष्य के सर्वागिण विकास का साधन थी। बौद्ध शिक्षा मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक एवं अध्यात्मिक उत्थान का एकमात्र माध्यम था। वर्तमान समय में बौद्ध शिक्षा की प्रासंगिता उसमें निहित तत्व से स्वतः परिलक्षित होता है। साथ ही इसके स्वरुप में निहित तत्व अद्यतन वैश्विक परिपेक्ष्य में इसकी उपयोगिता को प्रमाणित करता है। प्रत्येक आधुनिक संकल्पना, शक्ति, विचारधरा अपने को इतिहास के आधार पर सत्यापित करने का प्रयास करता है। आधुनिक संकल्पनाओं को इतिहास हमेशा वैधता प्रदान करता ह, इसलिए प्रत्येक समाज अपने लक्ष्यो तथा उददेष्यों को ध्यान में रखतें हुए संकल्पनाओं का इतिहासलेखन करने का प्रयास करते है। भारत में शिक्षा के सवालों को लेकर विमर्श ऋषियों-मुनियों यथा वेद, पुराण, अर्थशास्त्र आदि समय के सनातन परम्परा के साथ साथ बौद्ध, जैन एवं चार्वाक परम्परा के साथ देख सकते है। आज के समय में शिक्षा की व्याख्याएं लोग अपने अपने तरीके से कर रहे हैं। आज शिक्षा के क्षेत्र में भयंकर प्रतियोगिता छिडी नजर आ रही है। भारत में शिक्षा के दो अभिन्न तत्व बताए गए हैं- अध्यात्मिक तथा भौतिक अर्थात सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक। अतः शिक्षा का आधारभूत तत्व मनुष्य के व्यक्तित्व का समग्र विकास एवं समाज या लौकिक जीवन की आवश्यकता को माना गया है। प्रस्तुत आलेख में बौद्ध शिक्षा की पृष्ठभूमि वर्तमान शिक्षा की वैश्विक स्तर से आॅचलिक स्तर तक की विवेचना और वर्तमान के चिंतन की समीक्षा हमारा प्रयास होगा। Keywords: नव सांस्कृतिक, बौद्ध शिक्षा, बुद्धिवाद, वैश्विक, अध्यात्मिक शिक्षा, लौकिक शिक्षा
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तिवारी, अरविन्द. "नई कहानी का वैचारिक आधार और भीष्म साहनी की कहानियाँ". विचार 10, n.º 01 (15 de abril de 2017). http://dx.doi.org/10.29320/jnpgvr.v10i01.11064.

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कहानी साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधा है। समाज में घटित हो रहे परिवर्तनों को पाठकों के समक्ष रखने का ‘कहानी‘ सबसे लोकप्रिय माध्यम है। हिन्दी कहानी की विकास परंपरा में नयी कहानी सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखती है। नयी कहानी मूलत: मध्यवर्ग की कहानी है। मध्यवर्गीय समाज के अन्दर की पीड़ा तथा घुटन को नयी कहानी हमारे समक्ष रखती है। नये कहानीकारों में भीष्म साहनी का विशेष स्थान है। मध्यवर्गीय समाज की झूठी शान पर जैसा कटाक्ष भीष्म साहनी ने किया है वैसा अन्य किसी कहानीकार ने नही। उनकी कहानियों में समाज का नग्न सच हमें दिखलाई पड़ता है। मध्यवर्गीय जीवन में नये पारिवारिक रिश्तों के खत्म होते मूल्यों को वह प्रमुखता से अपनी कहानियों में उठाते है। भीष्म साहनी की कहानियाँ मध्यवर्ग के खोखले समाज को उजागर करती है। निःसन्देह भीष्म साहनी अपनी कहानियों के माध्यम से हिन्दी कहानी की विकास परंपरा में हमेशा प्रासंगिक बने रहेंगे।
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के वी वी एस, के क्रांति, विनोद कुमार, निशि केशरी y रामकेश मीना. "सफलता की कहानी: पलवल पॉलीहाउस". कृषि मञ्जूषा 4, n.º 02 (31 de marzo de 2022). http://dx.doi.org/10.21921/km.v4i02.9283.

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राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार किसानों के उत्पादन और आय को बढ़ाने के लिए भारत में संरक्षित खेती प्रणालियों को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। हरियाणा में, संरक्षित खेती बहुत ही कम समय में लोकप्रियता प्राप्त कर रही है। विभिन्न सरकारी योजनाओं के कारण संरक्षित खेती के तहत क्षेत्र 150 हेक्टेयर से अधिक तक पहुंच गया है। अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (सूत्रकृमि) ने पॉलीहाउस का सर्वेक्षण करते हुए श्री जसराम की दयनीय स्थिति को देखा और उस पोलीहाउस में प्रदर्शन परीक्षण करने का निर्णय लिया जहां जड़ गाँठ सूत्रकृमि की संख्या 8 द्वितीय अवस्था जूवेनाइल प्रति ग्राम मिट्टी में पाई गई थी। टमाटर की पिछली फसल में सूत्रकृमि की अधिक संख्या के कारण उसे नुकसान हुआ था। हमने टमाटर की जगह फसल बदलने का फैसला किया और शिमला मिर्च लेने का फैसला किया। हमने कुछ बायोएजेंटों के साथ मृदा सौरकरण तकनीक का उपयोग करने का भी निर्णय लिया जो जड़ गाँठ सूत्रकृमि के प्रबंधन के लिए बहुत अच्छे हैं। इस तकनीक का परिणाम बहुत उत्साहजनक रहा और किसान ने अपने पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की बहुत अच्छी फसल पैदा की और जड़ गाँठ सूत्रकृमि संख्या में भी कमी आई। पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की फसल से किसान को लगभग तीन लाख रुपये का लाभ हुआ।
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-, P. M. Bhumare. "मंडन मिसिर की खुरपी कहानी में महानगरीय बोध". International Journal For Multidisciplinary Research 6, n.º 2 (9 de marzo de 2024). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i02.14787.

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जहां पर बड़ी संख्या में लोग निवास करते हैं वहाँ पर उद्योग, सेवा, तकनीकी और शिक्षा के जैसे माध्यमों की विविधता होती हैं।गाँव की तुलना में महानगरीय परिवेश भिन्न होकर नव विचारों के सृजन में तीव्र गति से आगे बढ़ता है।जिसके कारण से व्यक्ति, समाज में क्रांतिकारी बदलाव आते हैं।साथ ही आर्थिक स्वावलंबन के कारण वैचारिक भिन्नता भी देखी जाती हैं।महानगरों में महँगाई और निवास की समस्या है जिसके परिणाम से संयुक्त कुटुम्ब पद्धति का विघटन और विभक्त कुटुम्ब परिवार का प्रचलन बढ़ जाता हैं।जिसके कारण महानगरीय जीवन संवेदनाहीन, पारिवारिक घुटन, जीवन मूल्यों के प्रति अनास्था जैसी प्रवृत्तियाँ बढ़ जाती है।प्रस्तुत कहानी में महानगरीय संस्कृति और जीवन में जो बदलाव आए है उनको अभिव्यक्त करना साथ ही गाँव और महानगरीय जीवन के वैषम्य से अवगत कराने का उद्देश्य रहा हैं।
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-, Savitri Suryakant Mandhare. "मुंशी प्रेमचंद के कहानी साहित्य में चित्रित वृद्ध विमर्श". International Journal For Multidisciplinary Research 6, n.º 1 (4 de enero de 2024). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i01.11625.

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आज के दिनों में बुजुर्गों की समस्या बड़ी समस्या हो गयी हैं , लोग बुजुर्ग माता पिता को एक तो घर में अकेले छोड़ देते हैं या उन्हें अनाथ आश्रम में छोड़ देते हैं I कई खबरे हम आज की तारीख में देख रहे हैं I जो बुजुर्ग अपने परिवार के लिए जिंदगी भर कष्ठ उठाते हैं उन्हें घर से बेदखल किया जाता हैं I अंध मा बाप को रेलवे स्टेशन पर अकेले छोड़ दिया जाता हैं I समाज में भी अकेले बेसहारा वृद्ध की अवहेलना की जाती हैं I उनके घर, जायदाद हथियाए जाते हैं I नजदीकी रिश्र्तेदार शुरुआत में तो बहुत सहानुभूति दिखाते हैं लेकिन एक बार जायदाद अपने नामपर करवाने के बाद उन्हें घर से निकाला जाता है , पेट भर खाने के लिए भी उन्हें तरसना पड़ता हैं I यह समस्या प्रेमचंद जी ने अपने कहानी साहित्य के द्वारा उजागर की हुई हैं I आज जो गहन समस्या बन गयी है उसे प्रेमचंद जी ने कई साल पहले ही अपने साहित्य का विषय बनाया था I वह एक यथार्थवादी साहित्यकार होने के कारन उनकी कहानीया हमें अपने घर ,आस पड़ोस की कहानीया लगती हैं I उनकी कहानियों से हमें वृद्ध विमर्श की झांकी साफ साफ दिखती हैं I इसी वृद्ध विमर्शका अभ्यास करने हेतु यह शोध आलेख सादर किया जा रहा हैं I
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-, डॉ ममता सिंह y अनिल कुमार -. "विष्णु प्रभाकर की कहानियों में मध्य वर्ग की मानवीय संवेदना". International Journal For Multidisciplinary Research 5, n.º 3 (30 de junio de 2023). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i03.4143.

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कहानी हिंदी साहित्य की सर्वाधिक सशक्त विधा है जो अत्यन्त लोकप्रिय है । मनुष्य स्वभाव से जिज्ञासु प्रवृत्ति का व्यक्ति है और वह अपने विचारों को किसी ना किसी माध्यम से प्रकट करता रहता है । लिखकर, बोलकर या संकेतो के माध्यम से वह अपने विचारों को अपने दुःख को प्रकट करने के रास्तों का निर्माण स्वयं करता है । कहानी भावों की अभिव्यक्ति का सरल माध्यम है । जिसका प्रभाव व्यक्ति के मानस पटल से लेकर हृदय स्थल तक सुगमता से पहुँचता है । प्रारंभ में कहानियों का निर्माण मनोरंजन के लिए किया जाता था । कालान्तर में कहानियाँ व्यक्ति और समाज के महत्वपूर्ण अनुभवों के प्रकटीकरण के साथ ही समाज सुधारक बनी हैं । आधुनिक समाज का यथार्थ अवलोकन कहानियों के माध्यम से समझा जा सकता है ।
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-, कुमारी ममता सिंह. "कमज़ोर वर्ग के शोषण की विभीषिका- “ठाकुर का कुआँ”". International Journal For Multidisciplinary Research 5, n.º 2 (9 de abril de 2023). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i02.2178.

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हिन्दी कहानियों के विकास के इतिहास में प्रेमचंद का आगमन एक महत्पूर्ण घटना है. उन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से समाज का पूरा परिवेश उसकी कुरूपता, असमानता, छुआछूत, शोषण की विभीषिका, कमज़ोर वर्ग और स्त्रियों का दमन जैसे कुरीतियों को व्यक्त किया है. उन्होंने सामान्य आदमी का जीवन बहुत ही नज़दीक से देखा था खुद उस जीवन को भोगा भी था. यही वजह है कि उनकी कहानियाँ यर्थात से जुड़ी होती थी. प्रेमचंद ने ‘ठाकुर का कुआँ’ कहानी के माध्यम से हमारे समाज में व्याप्त जातिप्रथा की सबसे घृणित परंपरा छुआछूत के कारण तिरस्कार, अपमान और मानवीय अधिकारों से वंचित जीवन जी रहे अछूतों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बयां किया है. ‘ठाकुर का कुआँ’ स्वच्छ पानी के लिए तरसते अछूत जीनव की वास्तविक कहानी है.
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देवी, अनिता. "‘एक वह अजेय’: कहानी संग्रह - सामाजिक, पारिवारिक मूल्यों का संरक्षण". Vantage: Journal of Thematic Analysis, 31 de octubre de 2022, 135–39. http://dx.doi.org/10.52253/vjta.2022.v03i02.14.

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‘एक वि अजेय’ किानी संग्रि िै, नजसकी रचना नदल्ली मेंजन्मेडॉ. वीरेन्द्र कु मार नेकी िै। इससेपिले डॉ. वीरेन्द्र कु मार द्वारा रनचत ‘अन्नदाता’ और ‘अपने-अपनेकु रुक्षेत्र’ नामक दो किानी संग्रि छप चुके िैं। यि उनका तीसरा किानी संग्रि िै। नपछलेकिानी संग्रि की किाननयों की तरि िी डॉ. वीरेन्द्र कु मार की इन किाननयों मेंभी कल्पना कम, यथाथथज्यादा िै। सरल एवं सिज भाषा मेंनलखी गई ये किाननयां पठनीय िोनेके साथ-साथ मध्यमवगीय जीवन के एकदम करीब िैं। किाननयों का ननमाथण नकसी भारी भरकम और सुननयोनजत कथ्य सेन िोकर उन छोटी-छोटी साधारण घटनाओंसेहुआ िै, जो िर घर में, पररवार में, और िर समाज मेंघनटत िोती िैं। समाज और पररवार मेंरितेहुए व्यक्ति अपने दैननक जीवन मेंकु छ सामान्य-सी घटनाओं और अपने-परायों के बीच अक्सर नजन छोटी-छोटी समस्याओं सेरूबरू िोता िै, उन्ी ंका नचत्रण-वणथन िमेंइस संग्रि की किाननयोंमेंनमलता िै। मनुष्य अपनेआस-पास घनटत िोनेवाली ऐसी आदतों-बातों और मुलाकातों को बहुत सिज रूप मेंलेतेिैं, जबनक येघटनाएं नकसी भी व्यक्ति के जीवन को सिी-गलत नदशा देनेमेंमित्त्वपूणथभूनमका ननभाती िैं। ऐसी िी कु छ घटनाओंका संग्रि कर लेखक नेइन किाननयोंको गुना-बुना िै।
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सिंह, डॉ महेंद्र. "ग्रामीण एवं सामाजिक चेतना में फणीश्वरनाथ रेणु का हिन्दी कहानी साहित्य". Knowledgeable Research, 31 de agosto de 2022, 26–30. http://dx.doi.org/10.57067/pprt.2022.1.1.4.

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फणीश्वरनाथ रेणु की प्रसिद्धि ग्रामकथा-लेखन और यथार्थवादी से हुआ है। फणीश्वरनाथ रेणु को विशेषतः मैला आँचल' और 'परती परिकथा के रूप में याद किया जाता है जबकि रेणु जी ने पाँच दर्जन से अधिक कहानियों की भी रचना की है। रेणु की पहली औपन्यासिक कृति मैला आँचल का प्रकाशन में हुआ। उसे गोदान के बाद का दूसरा महाकाव्यात्मक उपन्यास माना गया।'रेणु' के आशावान मन शैक्षणिक प्रगति से गांव की सामूहिक प्रगति का सपना देखता है, जातीयता का टूटन चाहता बहुत कुछ बदलाव आता भी है। गांव के नवयुवक और स्त्रियां जितेन्द्र की हवेली में आने लगती है। नवयुवक सुवंश- मलारी के प्रेम संबंधों को लेकर उठे वितंडावाद में उसका साथ देते हैं। शिक्षा औद्योगीकरण एवं आधुनिकीकरण गांव को नयी मानसिकता प्रदान करते है। अंधविश्वासों के जड़बद्धता संस्कार अब हिलने लगे हैं। रेणु को ग्राम परिवेश का समग्र बोध है। उन्हें उसके यथार्थ की गहरी परख और पहचान है जिसे वे लोक तत्वों की समाहिति से और भी गहरा चित्रित करते हैं। इस चित्रण में 'रेणु' विभिन्न बारीकियों, अनेक कोणों एवं विविध आयामों से परिवेश की जीवन्त सृष्टि करते हैं।
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पाण्डेय, अरुण कुमार. "स्टीरियो टाइप का प्रतिरोध रचती कहानियाँ". विचार 10, n.º 01 (15 de abril de 2017). http://dx.doi.org/10.29320/jnpgvr.v10i01.11063.

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नब्बे के दशक में कथाकारों की एक नई पीढ़ी अपनी कहानी-उपन्यासों के माध्यम से हमारे सामने उपस्थित हुई। अपनी प्रथम उपस्थिति से ही इस पीढ़ी ने आलोचकों और वृहत्तर पाठक समाज को आकर्षित कर कथा साहित्य के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया। आख्यान के खास तरह के अंदाज और अपनी बेबाकी के चलते इस पीढ़ी का लेखन हमेशा ही चर्चा में रहा। विषयगत विविधता और हर विषय के साथ अलग तरह का ट्रीटमेंट इस पूरी पीढ़ी की विशेषता है। सुप्रसिद्ध कथाकार संतोष चैबे उस पीढ़ी के महत्वपूर्ण लेखक हैं। इनकी कहानियां और उपन्यास भी हिंदी साहित्य जगत में अपनी बेबाक शैली के लिए जाने जाते हैं। प्रस्तुत आलेख इनकी कहानियों पर केंद्रित है। संतोष चैबे की कहानियों में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की गर्माहट है तो समाज में बदलाव लाने की एक आशान्वित पहल भी है। प्रथम दृष्टया इनकी कहानियाँ इनकी नवाचारी प्रवृत्ति के चलते एक बेपरवाही का एहसास कराती हैं किन्तु अपने विस्तार में वे किसी गंभीर संदेश तक पहुँचती हैं। संतोष चैबे की यह लेखकीय विशिष्टता, आलोचक पुष्पपाल सिंह के इस कथन कि “अपने चतुर्दिक उपस्थित यथार्थ को कहानीकार किस रूप में अपनी रचना में उपस्थित करता है, किस रूप में वह अपनी राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक स्थितियों को ग्रहण करता है, यही दृष्टिकोण उसकी कहानी का चरित्र बनाता है”। से काफी हद तक स्पष्ट हो जाती है। संतोष चैबे का दृष्टिकोण स्पष्ट है, इनकी पक्षधरता निर्विवाद है। इनकी कहानियां आज के भूमंडलीकृत, बाजारवादी समय में मनुष्यता और प्रेम को बचाने के लिए हर स्तर पर प्रयास करती हैं। नब्बे के बाद का भारतीय समाज बाजार और उसकी नीतियों से संचालित होने वाला समाज है। इस बदलाव ने देश के सामने कई चुनौतियां खड़ी की। बाजार की उदारवादी नीतियों से न केवल देशों में उत्पादों की उपलब्धता सरल हुई बल्कि इस अभियान का सीधा असर बाजार देशों की संस्कृतियों पर भी पड़ा। संतोष चैबे की कहानियां समय के इन बदलावों को एक तरफ चिन्हित करती हैं तो दूसरी तरफ इनके प्रभाव को भी विश्लेषित करती चलती हैं। प्रस्तुत आलेख इनकी कहानियों की इन विशेषताओं के साथ ही अनेक अन्य विशेषताओं का विश्लेषण करते हुए हिंदी कहानी जगत में इनका महत्व स्पष्ट करता है।
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-, कुमारी ममता सिंह y र्डॉ ममता रानी -. "भारतीय किसान की लोमहर्षक त्रासदी- “गोदान”". International Journal For Multidisciplinary Research 6, n.º 1 (30 de enero de 2024). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i01.12673.

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प्रेमचंद सम्पूर्ण मानव जाति का मंगल- कल्याण चाहने वाले मानवतावादी कलाकार थे | साहित्य के सम्बंध में उनकी मान्यता थी- “अब साहित्य केवल मन-बहलाव की चीज़ नहीं है | मनोरंजन के सिवाय उसका और भी कुछ उद्धेश्य है | अब वह केवल नायक-नायिका के संयोग-वियोग की कहानी नहीं सुनाता, किंतु जीवन की समस्याओं पर भी विचार करता और उन्हें हल करता है | अपनी इस मान्यता के अनुसार उपन्यासों में विविध चरित्रों के चित्रण के माध्यम से प्रेमचंद ने जीवन की समस्याओं पर विचार किया | प्रेमचंद उपन्यास को मानव-चरित्र का चित्र समझते हैं | भारतीय किसान कैसा होता है, उसे कैसी- कैसी विपत्तियाँ सहन करनी पडती हैं,यह बताने के लिए प्रेमचंद ने “गोदान” में होरी की कल्पना की है और उसके माध्यम से भारतीय किसान की लोमहर्षक जीवन का वर्णन किया है |
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अवस्थी, अपूर्वा. "प्रसाद जी की सूक्तियों में नियतिवादी दर्शन". विचार 11, n.º 02 (20 de diciembre de 2019). http://dx.doi.org/10.29320/vichar.11.2.7.

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जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य के अजर-अमर साहित्यकार हैं। प्रसाद जी दार्शनिक महाकवि थे, सांस्कृतिक चेतना सम्पन्न ऐतिहासिक नाटककार थे एंव जीवन की भाव सम्पदा को अभिव्यक्त करने वाले अनूठे कथाकार थे। प्रसाद जी के चिन्तन पर दर्शन के विविध आयामों का प्रभाव है। उनकी चिन्तना को सर्वाधिक प्रभावित करने का श्रेय नियतिवादी दर्षन को है। उनके काव्य, नाटक, कहानी, उपन्यास समग्र साहित्य पर नियतिवाद छाया हुआ है इसी साहित्य सागर में नियतिवादी सूक्तियों के अनेक मोती मिलते हैंै। चाहे ‘कामायनी‘ के ‘मनु‘ हों, या ‘अजातशत्रु‘ का ‘जीवक‘ हो या ‘स्कन्दगुप्त‘ की ‘देवसेना‘ या फिर ‘आकाशदीप‘ की ‘चम्पा‘ सभी पात्रों के संवादों में नियति सम्बन्धी सूक्तियाॅ अनुस्यूत हैं। नियतिवाद से जुड़ा इतना गहन और गम्भीर चिन्तन तथा उस चिन्तन मन्थन से उपजा सूक्ति सुभाषित नवनीत हिन्दी के किसी भी अन्य कवि अथवा साहित्यकार की रचनाओं में नहीं मिलता जैसा प्रसाद साहित्य में उपलब्ध है। प्रसाद जी को हिन्दी का प्रथम प्रौढ़ नियतिवादी साहित्यकार भी माना जा सकता है लेकिन प्रसाद के नियतिवाद का अर्थ भाग्यवाद कहीं से भी नहीं है। उनका नियतिवादी दर्शन कर्म दर्शन से परस्पर जुड़ा हुआ है और कर्म की प्रेरणा देता है।
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Sharma, Vimlesh. "Zindagee Hai Ya Koee Toofaan Hai, Ham To Is Jeene Ke Haathon Mar Chale...! (Meharunnisa Paravez Ke Upanyaas Koraja Ke Sandarbh Mein)". PARIPEX INDIAN JOURNAL OF RESEARCH, 15 de junio de 2023, 34–36. http://dx.doi.org/10.36106/paripex/0104334.

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'अमाकेलए िजसनेमझु ेकभीखोनेनहिदया'...यह महेनसा परवज़े के'कोरजा' उपयासके ारभं का समपण हैिजससेपरवज़े का लखे कीय दये और उनकेसजन ामक औेय का सहज ही बोध हो जाता ह।ैपरवज़े उपयास तथा कहानी सािहय मिवशषे थान रखती ह। ी जीवन के ासद प को कथा प दनेेमपरवज़े िसहत ह। इनकेकथा-सािहय मपारपरक ं ी की बिदशं उसका सघषं तथा आिदवासी परवशे की समयाएँिमलती ह।'आखँ की दहलीज', 'कोरजा', 'अकेला पलाश','समरांगण,और'पासगं 'उनकेमखु उपयास ह।'आदम और हवा','टहिनय पर धपू', 'ग़लत पषु ', 'फागनीु ', 'अितम ं चढ़ाई', 'सोनेका बसेर', 'अयोया सेवापसी', 'एक और सलैाब', 'कोई नह', 'कानी बाट', 'ढहता कतबमीनार ु ु ', 'रत'े, 'अमा' और 'समर' उनकी मखु कहािनयाँह।उपयासकेकाशनकी पं म“कोरजा”महेनसा परवजे का तीसरा उपयास ह,ैजो सन ्1977 मकािशत आ । इससेपहलेउनकेदो उपयास “आख ँ की दहलीज”,सन ् 1969 मऔर “उसका घर”,सन ्1972 मकािशत हो चकुेथ।े येदोन ही उपयास ी जीवन पर कित ह। 'आखँ की दहलीज' ममलम ु समाज, उसकी तहज़ीब, सघषं और सकं ृित और 'उसका घर' मइसाई समाज और सकं ृित का जीवतं िचण आ ह।ैलेखका दोन ही समाज की ामािणक जानकारी रखती ह,ैइसलए इनका लखा सहज है। 'कोरजा' मउहनेबतर केहािशये केलोग,आिदवासी समाज,ी-जीवनके दःुख-ददऔर सघषं को मखर ु वाणी दी है। महेनसा परवजे नेततु उपयास मबतर केइितहास और बाज़ारीकरण और आधिनकता ु केकारण वहाँहो रहेसांकृितक बदलाव पर भी काश डाला ह।ै 'कोरजा' उपयास कीइसी िवशषेता केकारण उह 'कोरजा' केलए सन ्1980 ममयदशे शासन ारा महाराजा वीरिसहं दवे परकार ु और सन ् 1980 मही उरदशे शासन,उर दशे,लखनऊारा समािनत िकया गया ।
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-, ममता सिंह. "प्रेमचंद के साहित्य में नारी संघर्ष और चुनौतियाँ". International Journal For Multidisciplinary Research 5, n.º 2 (21 de abril de 2023). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i02.2466.

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मुंशी प्रेमचंद एक जनवादी तथा प्रगतिशील लेखक थे। प्रेमचंद हिंदी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक रहे है | उन्होंने कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया, जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया | प्रेमचंद ने अपना लेखन सन 1908 ई. के आसपास शुरु किया और 1936 तक उनकी कलम बिना रुके चलती रही. यह वह समय था जब भारतीय समाज में स्त्रियाँ दासी की तरह जी रही थी | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने ठीक ही लिखा था कि हमारे समाज में स्त्रियाँ दासों की दासियाँ हैं | यह वह समय था , जिसमें स्त्रियाँ एक साथ उपनिवेशवाद और सामंतवाद की चक्की में पिस रही थी | उन्हें समाज में पुरुषों के जैसा अधिकार प्राप्त नहीं था, यही वजह थी कि प्रेमचंद नारियों के तत्कालीन दशा से संतुष्ट नहीं थे | मध्यवर्ग, निम्नवर्ग की नारियां अपने अधिकारों से वंचित थी। ज़मींदार, महाजन आदि परिवार की स्त्रियाँ घरेलू कार्यों तक सीमित थी जबकि काश्तकार आदि वर्ग की स्त्रियाँ घरेलू कार्यों के साथ-साथ खेतों में भी काम करती करती थीं। मध्यम वर्ग के परिवारों में नारी-शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता था। ऐसे समय में प्रेमचंद ने नारी समस्या को मुख्य विषय बनाया तथा अपने मध्यम व् निम्न वर्ग की स्त्रियों को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही नहीं बल्कि अपने उपन्यास एवं कहiनियों के माध्यम से नारी की दुर्दशा को उजागर किया, जो हिंदी साहित्य को दी हुई अपूर्व देन है। प्रेमचंद ने कहा है- नारी की उन्नति के बिना समाज का विकास संभव नहीं है, उसे समाज में पूरा आदर दिया जाना चाहिए तभी समाज उन्नति करेगा। प्रेमचंद की नारी भावना ने साहित्य में एक युगांतर प्रस्तुत किया है।
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