Auswahl der wissenschaftlichen Literatur zum Thema „तुलसी“

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Zeitschriftenartikel zum Thema "तुलसी"

1

आचार्य, डॉ भावना. „पवित्र तुलसी“. International Journal of Social Science and Education Research 3, Nr. 2 (01.01.2021): 17–18. http://dx.doi.org/10.33545/26649845.2021.v3.i2a.22.

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2

उपाध्याय, नितेश, und महेन्द्र कुमार उपाध्याय*. „तुलसी एवं युग सन्दर्भ“. Humanities and Development 16, Nr. 1-2 (06.12.2021): 96–104. http://dx.doi.org/10.61410/had.v16i1-2.19.

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तुलसीदास जी का समस्त साहित्यिक चिंतन अपने समय और समाज का जीवंत दस्तावेज है। उन्होंने अपने चिंतन के माध्यम से मध्यकालीन परिस्थितियों को उकेरा है साथ ही जनमानस के बीच समन्वय का मार्ग प्रस्तुत किया। संसार को जानने की बात लेकर तुलसीदास कविता में प्रवृत्त होते हैं। इससे आगे बढ़कर एक आम मनुष्य की बात करते हैं, और इसे आदर्श मनुष्य तक पहुँचाते हैं।
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3

झा, संगीता कुमारी. „तुलसी दास की दोहावली का नैतिक मूल्यांकन“. International Journal of Advanced Academic Studies 1, Nr. 2 (01.10.2019): 214–16. http://dx.doi.org/10.33545/27068919.2019.v1.i2c.372.

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4

Goyal, Mamta, und Harisingh Bisoriya. „Bhakti Kaal, the Golden Age of Hindi Literature: General Analysis“. RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, Nr. 2 (15.02.2023): 112–16. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n02.020.

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Acharya Ramchandra Shukla had divided the history of Hindi literature into four parts Drveeragathakaal, Bhaktikal, Ritikal and Modern period. Samvat 1050 to 1365 is in Veergatha Kaal, 1365 to 1700 in Bhakti Kaal, 1700 to 1900 in Riti Kaal and devotional poetry from 1900 till now comes in modern period. Bhaktikal is called the golden age of Hindi literature. Sur, Tulsi, Kabir, Jayasi, these four great poets were born in the period of devotion. This period gave birth to the sun and moon of Hindi literature sky. Although three currents flowed in this period, the path of love, the path of knowledge and the path of pure devotion, yet in these three streams only the inner source of devotion is visible flowing, hence it is called the period of devotion. Love is also a form of devotion. Bhakti poetry was divided into two streams, one stream and the other Saguna stream. The pioneers of the Nirguna stream emphasized the worship of the formless God. The nirguna stream also got divided into the path of knowledge and the path of love. Kabir was the main poet of Gyanmargi branch and Muhammad Jayasi was the master of Premmargi branch. Similarly, the poets of the Saguna stream emphasized the worship of the corporeal God. Surdas was the main poet of Krishna-Bhakti and Tulsi of Ram Bhakti branch. Abstract in Hindi Language: आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास को चार भागों में विभाजित किया थादृवीरगाथाकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल तथा आधुनिक काल। सम्वत् 1050 से 1365 तक का समय वीरगाथाकाल में, 1365 से 1700 तक का समय भक्तिकाल में, 1700 से 1900 तक का समय रीतिकाल में तथा 1900 से अब तक का समय भक्तिकालीन काव्य आधुनिक काल में आता हैं। भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता हंै। सूर, तुलसी, कबीर, जायसी ये चारों महाकवि भक्तिकाल में ही उत्पन्न हुए। इसी काल ने हिन्दी साहित्य गगन के सूर्य और चन्द्रमा को जन्म दिया। यद्यपि इस काल में प्रेममार्गी, ज्ञानमार्गी और सगुण भक्तिमार्गी तीन धारायें प्रवाहित हुई, तथापि इन तीनों धाराओं में भक्ति का ही अन्तः स्रोत प्रवाहित होता हुआ दृष्टिगोचर होता है इसलिए इसको भक्तिकाल कहा जाता है। प्रेम भी भक्ति का ही एक रूप हंै। भक्ति काव्य दो धाराओं में विभक्त हुआ एक धारा दूसरी सगुण धारा। निर्गुण धारा के प्रर्वतकों ने निराकार भगवान की उपासना पर बल दिया। निर्गुण धारा भी ज्ञानमार्गी तथा प्रेममार्गी धाराओं में विभक्त हो गई। ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवि कबीर थे तथा प्रेममार्गी शाखा के मलिक मुहम्मद जायसी। इसी प्रकार सगुण धारा के कवियों ने साकार भगवान की उपासना पर बल दिया। कृष्ण-भक्ति के प्रमुख कवि सूरदास थे तथा राम भक्ति शाखा के तुलसी। Keywords: भक्तिकाल, स्वर्ण युग, हिन्दी साहित्य, सगुण धारा।
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5

दीनानाथ, डॉ. „आजीवक रैदास का बेगमपुरा : एक नए भारत की खोज“. Praxis International Journal of Social Science and Literature, 06.07.2022, 149–54. http://dx.doi.org/10.51879/pijssl/050621.

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मध्यकाल में निर्गुण अवर्ण- संत अपनी स्थापना में वैदिक और शास्त्रीय परंपरा से संघर्ष करते हुए प्राचीन आजीवक धर्म और दर्शन के साथ आगे बढ़ रहे थे, तो सगुण सवर्ण- भक्त उनकी प्रतिक्रिया में वैदिक और शास्त्रीय परंपरा को सही ठहरा रहे थे। रैदास और कबीर की जोड़ी ने अवर्णवादी आजीवक राज्य की पुनर्स्थापना करनी चाही जिसे ‘बेगमपुरा’ और ‘अमरदेसवा’ के नाम से जाना जाता है, तो सूर और तुलसी की जोड़ी ने वर्णवादी वैदिक राज्य की पुनर्स्थापना में ‘बैकुंठ’ और ‘रामराज्य’ की अवधारणा दी। जायसी हिन्दू- मुस्लिम की एकता और प्रेम पर आधारित सूफी धर्म को आगे बढ़ा रहे थे जिनका यूटोपिया ‘सिंहलदीप’ है। बादशाह अकबर को नए धर्म की जरूरत पड़ी तो उन्होंने कई धर्मों की अच्छी बातों को लेकर ‘दीन ए इलाही’ धर्म की स्थापना की। गुरुनानक ने रैदास और कबीर की कविता को लेकर ‘सिख धर्म’ खड़ा किया। इससे सिद्ध होता है कि मध्यकाल का समाज अपनी धार्मिक अस्मिताओं को लेकर प्रतिबद्ध रहा है।
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6

गजपाल, चेतना, und कुबेर सिंह गुरूपंच. „पर्यावरण संरक्षण मे महिलाओ की भूमिका“. International Journal of Reviews and Research in Social Sciences, 29.06.2023, 116–20. http://dx.doi.org/10.52711/2454-2687.2023.00017.

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पर्यावरण मानव जीवन पद्धति के लिए यदि अनिवार्य अंग है तो इसका संरक्षण और बचाव भी मानव का परम कर्त्तव्य बन जाता है। पर्यावरण संरक्षण मानवीय जीवन के लिए अति आवश्यक विषय - वस्तु बन गया है। इस दिशा में वैश्विक एवं भारत दोनों ही स्तरों पर अनेक प्रयास एवं आन्दोलन अनवरत जारी है। पर्यावरण संरक्षण में स्त्री की भूमिका महत्वपूर्ण है। पर्यावरण को बचाने के लिए स्त्रियों ने योगदान दिया है। महिलायें वैदिक काल से ही पर्यावरण संरक्षण के पक्ष में रही है। उसका उदाहरण तुलसी पूजा एवं वट वृक्ष पूजा है। भारतीय महिलायें सदैव इस दिशा में कार्यशील रही है। हमारी भारतीय ंसंस्कृति को देखने पर रीति-रिवाजों, परम्पराओं में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुकता दिखाई देती रही है। भारतीय महिलायें सदैव से ही पर्यावरण संरक्षण में पुरुषों से आगे रही हैं इसका पता हमें विभिन्न पर्यावरण संरक्षण के आन्दोलनों का अध्ययन करने पर चलता है। महिलाओं ने पर्यावरण व वनों की रक्षा के लिये कई आन्दलनों में भाग लिया इनमें अग्रणी भमिका निभायी है और अपने प्राणों की आहूति तक दी है। कार्ल मार्क्स का कथन है कि सृष्टि में कोई भी बड़े से बड़ा सामाजिक परिवर्तन महिलाओं के बिना नहीं हो सकता’’। अतः महिलाओं ने सदैव ही पर्यावरण संरक्षण की बात की है।
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Dissertationen zum Thema "तुलसी"

1

Rai, Lalita. „Tulsi `apotan` ka kavyakritiharuko bislesanatmok adhyayan तुलसी 'अपतन' -का काब्यकृतिहरुको विश्लेषणात्मक अध्ययन“. Thesis, University of North Bengal, 2006. http://hdl.handle.net/123456789/1696.

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